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High Heels by Yo Yo Honey Singh - Kavi Parichay evam Bhavarth

हाई हील्स - द्वारा श्री यो यो हनी सिंह

कवि परिचय एवं भावार्थ


इस भावार्थ को मेरे स्वर में सुनने के लिए नीचे क्लिक करें:

https://soundcloud.com/kumar-ritwik/high-heels-kavi-parichay-evam-bhavarth


उक्त कविता महाकवि श्री यो यो हनी सिंह के प्रतिनिधि काव्यों में से एक है । इन पंक्तियों में कवि एक युवती को सम्बोधित करते हुए अपने विचार व्यक्त कर रहे हैं ।

श्री यो यो हनी सिंह जी का जन्म पंजाब प्रांत के होशियारपुर गाँव में हुआ था और उनके माता-पिता ने उनका नाम हिरदेश सिंह रखा था । साहित्य की दुनिया में कदम रखने पर उन्होंने "हनी सिंह" के उपनाम को अपनाया और अपने दोनों नामों को चरितार्थ करते हुए ऐसी कविताओं की रचना की जो मधुर होने के साथ-साथ हृदय भेदी भी हैं ।

यो यो जो की रचनाओं में कुछ विषय-वस्तु  बारम्बार ही उजागर होते हैं । ऐसी ही एक मौलिक विचारधारा है कवि की नारी-समाज से रु-ब-रु होने की कोशिश। चाहे वह "ब्राउन रंग" के द्वारा समाज के सौंदर्य के आयामों पर कटाक्ष हो, या फिर "अंग्रेजी बीट" और "बेबो" में नारी स्वछँदता की अभिव्यक्ति।

यो यो जी अपनी कविताओं में लोककथाओं के विवेचन के लिए भी जाने जाते हैं और "हाई हील्स" इसी का एक उदाहरण  है । "हाई हील्स" महर्षि विश्वामित्र और अप्सरा मेनका के प्रसंग की अन्योक्ति है । देवराज इंद्र के कहने पर मेनका ने अपने रूप एवं यौवन से विश्वामित्र की तपस्या भंग की थी और उनकी आकाँक्षाओं को अपने अनुकूल कर लिया था । उसी प्रकार "हाई हील्स" कविता की नायिका ने कवि के ध्यान को भंग किया है।

"पहली बात तो ये
जो तू टिक-टॉक टिक-टॉक चलती है
माना ये सारी तेरी हाई हील्स की गलती है
रुक तो जा तू, हैंग ऑन
ये तो बता तू है कौन
कहाँ से आई है, कहाँ को जाएगी
पागल लड़की मुझे मरवाएगी"

इस काव्य की नायिका एक ऐसी युवती है जिसे ऊँची एड़ी की जूतियों का शौक है और जब वह चलती है तब उनकी जूतियां फर्श पर टिक-टॉक की ध्ववि का सृजन करती हैं । इस सन्दर्भ में नायिका की जूतियां मेनका की मोहकता का प्रतिनिधित्व करती हैं । उनकी जूतियों की ध्वनि कवि को मंत्र मुग्ध करती है और उनका तप टूट जाता है । कविता की शुरुआत तब होती है जिस क्षण कवि का ध्यान भंग  होता है।

कवि जानते हैं कि उनके ध्यान में बाधा नायिका ने पहुँचायी है, परन्तु वो उसके मोहपाश में बांध चुके हैं और कहते हैं की वो मानते हैं की नायिका अबोध है और उसने जानते हुए विघ्न नहीं डाला । वह इसका दोष उसकी जूतियों पर मढ़ देते हों और इस मुग्धावस्था में नायिका से निवेदन करते हैं। वो जानना चाहते हैं की नायिका कहाँ से आई हैं और कहाँ जाना चाहती हैं। कवि अपने तप के फलस्वरूप स्वर्ग और धरती, आकाश और पातळ के यथार्थ से अवगत हैं। वो जानते हैं की कोई कहाँ से आया है और कहाँ जायेगा ये अनावश्यक प्रश्न हैं। परन्तु उस टिक-टॉक के आगोश में वो ऐसे बेमानी सवाल करने को भी विवश हैं ।

प्रथम छंद की आखिरी पंक्ति में कवि कहते हैं "पागल लड़की मुझे मरवाएगी"। यहाँ "पागल लड़की" से कवि का आशय नायिका के दीवानेपन से है - एक ऐसा उन्माद जिसने न केवल उनकी तपस्या भंग की बल्कि राग-अनुराग की ऐसी अग्नि को प्रज्ज्वलित किया कि कवि जीवन-मरण के कालचक्र से परे निकल गए।

"बस कर ये जलवे न दिखा
ये सब तो मैं देख चूका
तुझ जैसी तो पट जाती है
फिर दुर्घटना घट जाती है"

कविता के दूसरे छंद में कवि विश्वामित्र और मेनका की कथा का दूसरा अध्याय प्रस्तुत करते हैं ।

कवि को अपने संयम खोने पर ग्लानि का भास होता है और वह स्वयं को नायिका के बंधन से मुक्त करने का प्रयत्न करते हैं। उनके मन में क्रोध की ज्वाला धधक रही है -  हालाँकि उनका यह क्रोध स्वयं पर है पर इस आग को वो नायिका की ओर केंद्रित करते हैं। उनके हृदय में प्रेम का जो सागर हिलोरे खा रहा था, वह आक्रोश की अग्नि में तपकर नायिका पर बरस रहा है। ये पंक्तियाँ विरोधाभास की अतिश्योक्ति से अलंकृत हैं और कवि के साहित्यिक क्षमता के चरम का आभास दिलाती हैं।

ऊपर ही ऊपर कवि कहते हैं की नायिका उनसे दूर चली जाएँ पर उनका मन विचलित है। वो कहते तो हैं की ऐसे रूप और आकर्षण के वो आदि हैं और उनपर इसका कोई असर नहीं होता पर उनकी चेतना उनके तप की लक्ष्मण रेखा को लांघ रही है । स्वयं को सांत्वना देने के लिए कवि कहते अवश्य हैं की वास्तव में उन्होंने नायिका को अपने वष में किया है पर उन्हें ज्ञात है कि उनका स्वः, उनका ध्येय अब नायिका के आधीन है। उन्हें भविष्य का पूर्वाभास है और वो जानते हैं कि इसका परिणाम प्रतिकूल होगा। इस परिणाम की किलकारियां खतरे की घंटी बनकर उनके मस्तिष्क में गूँज रही हैं। इसीलिए वो नायिका का उपहास करते हैं।

"मैं हूँ शिकारी कुड़िये, खाली मेरा वार नहीं जाता
मुझको न पहचाने तू, तेरे घर अखबार नहीं आता?"

अंतिम दो पंक्तियों में कवि के स्वर में बदलाव दिखाई देता है। इस बदलाव को समझने हेतु हम पाठकगण बस अनुमान और अटकलें ही लगा सकते हैं। विद्वानो का मानना है कि कवि के कटु वचनों से नायिका हतोत्साहित हो जाती हैं। वो कवि का कृत्रिम उपहास करती हैं और संकेत देती हों कि कवि उनकी नज़रों में एक हीन मनुष्य हैं। उनके ऐसे विचार सुनकर कवि के आत्मसम्मान को घात पहुचता है और वो खुद को नायिका की दृष्टि में सुशोभित करने का प्रयत्न करते हैं।

जिस विश्वामित्र-मेनका प्रसंग से काव्य की शुरुआत की थी, उसे अग्रसर करते हुए कवि अपने अंतर्मन के विश्वामित्र को जागृत करके पाठको के सामने प्रस्तुत करते हैं। अपने तप से विश्वामित्र ने ब्रह्मास्त्र को अर्जित किया था और हम जानते हैं की ब्रह्मास्त्र का वार कभी खाली नहीं जाता था। उसी प्रकार कवि कहते हैं की वो ऐसे योद्धा हैं जो कभी अपने लक्ष्य से नहीं चूकते। एक बार उनकी दृष्टि जिस पर पड़ जाती है वो उसे अपने वष में कर लेते हैं।
इस विचारधारा, इस अहम को एक सम-सामाजिक पृष्ठभूमि में पेश करते हुए कवि कहते हैं कि यदि नायिका उन्हें पहचाने से इंकार करती हैं तो इसका तात्पर्य यह है कि वो वास्तविकता से अज्ञात हैं। अन्यथा वो ऐसी त्रुटि नहीं करती क्योंकि कवि इतने विश्व-विख्यात हैं कि उनका चित्र प्रत्येक समाचारपत्र के प्रथम पृश्ठ पर छपता है।

और इसी हास-परिहास के साथ कवि इस पद्य को समाप्त करते हैं. यह रचना कवि के अंतर्मन, उनके स्वः, उनके आत्मसम्मान, उनके उन्माद एवं अंतर्विरोध का प्रतिबिम्ब है। कवि का निर्भीक स्वर और उनके विचारों का बुनियादी स्वरुप "हाई हील्स" को आधुनिक साहित्य के उच्चतम पटल पर स्थापित करता है।


नोट्स:
इस महाकाव्य को कवि की अपनी वाणी में सुनने के लिए निचे क्लिक करें:

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